हम जीतकर दिखाएँगे।

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 हम जीतकर दिखाएँगे।


एक क्‍या अनेक वाइरस आएंगे,

हम जीतकर दिखाएंगे।


ये वाइरस तो मात्र प्रचार पा गया,

नहीं तो कितने ही वाइरस हमारे भीतर पल रहे,

जो अंतरात्मा की आवाज सुनने ही नहीं देते,

हम इनपर विजय पाएंगे और आत्मा को जगाएँगे।

हम जीत कर दिखाएंगे।


ईर्ष्या, द्वेष, मोह, भय, काम, क्रोध और लोभ जैसे

वाइरस

के आवरण को आत्मा पर से हटाकर, देह अभिमान से

ऊपर उठकर,

चरित्र नया बनाएँगे।

हम जीतकर दिखाएंगे।


संकल्प शक्ति, प्रेम, विश्वास, सद्भावना और सहानुभूति

की वैक्सीन

अंतरात्मा को प्रतिदिन जब लगाएंगे,

तो ये वाइरस कहाँ टिक पाएंगे।

हम जीतकर दिखाएंगे।


नई ऊर्जा, नई चेतना, दृढ़ विश्वास और एकता के

साथ,

जब हम कर्तव्य पथ पर ज्ञान और योग का दीपक

जरा जलाएंगे,

तो ये वाइरस कहाँ टिक पाएंगे।

हम जीतकर दिखाएंगे।


हो विकट परिस्थिति कितनी भी, शरीर के साथ-साथ,

मन की शक्ति को भी बढ़ाकर, सकारात्मकता जब

लाएँगे,

तो ये वाइरस कहाँ टिक पाएंगे।

हम जीतकर दिखाएंगे।


प्रकृति के मूल्यों को पहचान कर, सम्मान कर,

प्रकृति विरुद्ध आचरण पर, संयम जब हम लगाएंगे,

तो. ये वाइरस कहाँ टिक पाएंगे।

हम जीतकर दिखाएंगे।


-रंगोली अवस्थी

पुस्तकालय सूचना अधिकारी

पी. के. केलकर लाइब्रेरी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर

हिंदी साहित्यिक पत्रिका - अंतस





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